सिदेश्वर संत श्री गुलाब बाबा की जय

Sagar Ashram

1 - श्री गुलाबबाबा आस्था का केन्द्र संत श्री गुलाबबाबा मंदिर सागर


श्रीगुलाबबाबा आस्था का केन्द्र संत श्रीगुलाबबाबा मंदिर सागर (म.प्र.) सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैले संत गुलाब बाबा के भक्तों के लिए तीर्थक्षेत्रों - काटेल, टाकरखेड (समाधी मंदिर), मुंबई (विरार), नागपुर, रायपुर, औरंगाबाद, नासिक आदि के साथ सागर (म.प्र.) में स्थापित श्री गुलाबशक्ति सिद्ध क्षेत्र संत श्री गुलाबबाबा मंदिर, सागर (म.प्र.) भी अत्यन्त पूज्यनीय तीर्थक्षेत्रों में से एक है और इस मंदिर में श्री बाबाजी की जागृत प्रतिमा के दर्शन मात्र से भक्तों को एक अलग अनुभूति प्राप्त होती है।

स्वयं श्री गुलाबबाबाजी के शब्दों में - सागर-दमोह के भक्तों का प्यार, आदर, निष्ठा एवं एकाग्रता अनुकरणीय एवं सर्वश्रेष्ठ है।

वंदनीय बाबा जी का मंदिर सागर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पंतनगर वार्ड, धर्मश्री रोड पर स्थित है मंदिर परिसर में पूर्वमुखी महाद्वार के उर्ध्व भाग में विठ्ल रूकमणी माई, मध्य भाग में श्रीगरुण श्री तुकाराम श्री हनुमान जी विराजित हैं, महाद्वार से प्रवेश करते समय बिल्कुल सम्मुख पश्चिम द्वार के उर्ध्व भाग में श्रीराम दरबार सुशोभित है, मंदिर परिसर के मध्य भाग में प्रवेश द्वार पर भगवान शिवशंकर माता पार्वती जी के साथ शोभायमान हैं, इसी प्रवेशद्वार के बायी तरफ अम्बर दत्तात्रेय एवं कदम्य उद्यान के सम्मुख वंदनीय बाबा जी का सौम्य सुन्दर एवं रमणीक मंदिर है। मंदिर का प्रवेश द्वार नन्दी द्वार है। जिसके दाये बाये विशालकाय सफेद हाथी है जिसकी शिखा पर ध्वज एवं कलश शोभित हैं, इसी नन्दी द्वार से प्रवेश करने पर श्री गणेश को उर्ध्व भाग में नमस्कार कर मंदिर प्रवेश करने पर सम्ममुख वन्दनीय बाबाजी श्री कृष्ण-राधा की युगल जोडी के साथ सुखासन स्वरूप में विराजित हैं । मुखमण्डल का असीम तेज, नयनाभिराम दर्शन, अधरों पर चिर मुस्कान- भक्तों के हृदय को रोमांचित कर असीम तृप्ति का अनुभव एवं कामना पूर्ति का शुभार्शीवाद की पुष्टि करती है, मंदिर का अन्तहकरण, पंचकोण का आसन प्रकोष्ठ पांच तत्वों का प्रतीक है, मानो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, पर विजिय प्राप्त कर मन सत्यम् शिवम् सुन्दरम् हो गया हो मंदिर के अन्तहकरण की शोभा का स्वरूप शिवलिंग की भांति मंदिर परिसर में प्रगटय है मंदिर की शिखा पर ध्वज एवं कलश रोहण मानो चन्द्रशेखर के स्वरूप का दर्शन दे रहा हो।

2 - श्री गुलाबशक्ति सिद्ध क्षेत्र (संत श्री गुलाबबाबा मंदिर) सागर


संत श्रीगुलाब बाबा के श्रीमुख के निकले शब्दों- 'सागर-दमोह के भक्तों का प्यार.....।' के कारण ही मुंबई के भक्त शिरोमणी पूज्यनीय दादाजी ने समस्त भक्तों के सहयोग से सागर में दुबे तालाब के सामने करीब 10000 वर्गफ्ट (करीब आधा एकड जमीन) को वहाँ के पटेल परिवार से 26फरवरी (सोमवार) 2007 को कानूनी खरीदा एवं अगले दिन 27 फरवरी (मंगलवार) 2007 को दोपहर ठीक 12 बजे सिद्धेश्वर संत श्री गुलाब बाबा मंदिर निर्माण हेतू भूमि का भूमिपूजन किया, जिसमें डॉ.अमरनाथ जैन, डॉ. भरत वाखाले, डॉ. हरीशंकर साहू, शिवकुमार ताम्रकार, डॉ. अनूप साहू, डालचंद पटेल (राज्यमंत्री), वैभव मुले, के.एल.नेमा, डॉ. अजय विश्वकर्मा, डॉ. नन्हौरिया, प्रकाश मोदी, टंटू भजन मंडली सहित क्षेत्र के असंख्य भक्त शामिल हुये।

पूज्यनीय बाबाजी के भक्त एवं मुंबई वाले दादा के अधीनस्थ श्री राजेन्द्रसिंह सोहेल (राजू सरदार जी-मंबई) के मार्गदर्शन में 19 मार्च 2007 (नवदुर्गा प्रारंभ ) के दिन से भूमि की वाऊन्ड्रीबाल का निर्माण आरंभ हुआ एवं मात्र 10 दिन में लगभग 18 फुट ऊँची वाऊन्ड्रीबाल का निर्माण रात-दिन में पूरा हुआ । पूज्यनीय मुंबई वाले दादाजी-ताई के सहयोग एवं देश के अन्य गुलाबबाबा मंदिरों की योजनानुसार, श्रेष्ठ इंजीनियरों से विचार विमर्श कर दादाजी एवं भक्तों के सहयोग से राजू सरदार (मुंबई) के मार्गदर्शन में राजस्थान, गुजरात, मुंबई उत्तरप्रदेश के कारीगिरों एवं आगरा के कल्याण दत्त ( जिन्होने टाकरखेडा एवं मुंबई का मंदिर बनाया है ) ने अपने साथ करीब 100 मजदूरों, टेक्नीशियनों, मिस्त्री आदि के साथ मात्र 22 माह की अवधि में दिन रात कार्य करते हुये दिसम्बर 2008 की 2 तारीख को संत श्री गुलाबबाबा का मंदिर, बाजू में भजन शाला, और करीब 8 कमरों को पूर्ण किया ताकि श्री बाबाजी की मूर्ति स्थापना हो सको

सन् 2008 में नरसिंहगढ भक्तमंडली के मन में बाबाजी की पैदल पालकी यात्रा निकालने के भाव पैदा हुए, एक पालकी बनाकर 100 कि.मी. पैदल यात्रा कर करीब 100 भक्त सागर आये । और प्रतिवर्ष 29 नवम्बर को नरसिंहगढ से चलकर गाँव-गाँव भजन-भंडारा करते हुए 3 दिसम्बर को सागर आते हैं। 4 दिसम्बर को शहर भ्रमण के बाद मंदिर में भजन करते हैं। एवं 6 दिसम्बर को वापस गाँव जाते हैं।

सागर में बाबा जी का मंदिर बनाने का उद्देश्य ही, गरीब भक्त हैं जो काटेल एवं टाकरखेड नहीं पहुंच पाते हैं वह सागर आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। सागर गुलाबबाबा मंदिर की धर्मशालाओं में करीब 1000 भक्तों के रहने एवं भोजन की व्यवस्था है। जिस समय से मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ तभी से रोज 100-200 भक्तों एवं आनेवाले भक्तों को निःशुल्क रहने एवं भोजन की व्यवस्था है। जबसे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई तभी से यहाँ आने वाले भक्तों की अनेक मनोकामनायें पूर्ण है । जबसे निर्माण कार्य प्रारंभ है तभी से हर गुरुवार, हर पूर्णिमा, महाशिवरात्रि, होली, अषाढी एकादशी, गुरुपूर्णिमा, जन्माष्टमी एवं दीपावली भजन भंडारे के कार्यक्रम चालू है।

शंकर-पार्वती गेट सन् 2000 में बनाया गया, जिस पर शंकर-पावर्ती की मूर्ति की स्थापना जिस समय की गयी उस समय जो फोटो निकाली गयी थी उसमें शंकर जी के सिर के पास चंद्रमा की उपस्थिति थी।

सन् 2010 में नौ-दुर्गा के समय रामदरबारगेट के ऊपर राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की गयी। बाबाजी के मंदिर प्रांगण के मुख्य द्वार सन् 2010 में पूर्ण हुआ एवं उस पर विट्ठल, रुकमाई, ज्ञानेश्वर, नामदेव, हनुमानजी की मूर्ति स्थापना 2011 में 3 दिसम्बर को की गयी थी। सन् 2009 में स्थापना के समय श्री आल्मेडा दादा की उपस्थिति विशेष रूप से थी एवं उन्हीं के निर्देशानुसार निर्माण कार्य किया गया। मंदिर का मार्बल एवं लाल पत्थर का कार्य कारीगरों द्वारा 6 वर्ष में किया गया। मजदूरी का कार्य खंडवा एवं बैतूल के मजदूरों द्वारा किया गया। इसी प्रकार बम्बई से आये कारीगरों द्वारा बिजली एवं सॅनेटरी फिटिंग का कार्य किया गया। सागर मंदिर, धर्मशाला एवं अन्य कार्य श्री राजू सरदार, बम्बई की देखरेख में किया गया । सागर संत श्री गुलाब बाबा को गूगल अर्थ द्वारा देखने पर शिवलिंग का आकार दिखाई देता है। श्री अल्मेडा दादा द्वारा कहा गया कि इस मंदिर की वास्तु हरी हर मंदिर की है। भविष्य में यहाँ पर एक देवीमंदिर एवं साई बाबा मंदिर बनाने की योजना है।

प्रतिवर्ष पालकी यात्रा को कहाँ से शुरू करे ? अत: गुलाब आश्रम / द्वारकामाई का निर्माण कार्य एवं करीब 40 हजार वर्ग फुट जगह को खरीदा गया जहाँ से प्रतिवर्ष 2010 से पालकी यात्रा शुरू की जाती है। पालकी यात्रा में हाथी, घोडे, बरुणी, पालकी, बाबाजी के वाहन के साथ निकलती है। पूरे शहर में तोरण एवं गेट बनाकर भक्त पालकी यात्रा का स्वागत किया करते हैं। मंदिर के ठीक सामने दाएं तरफ पर कदम का झाड और बाएं तरफ पर अंबर का झाड लगा है।

26 फरवरी, 2007 सोमवार को लगभग 20000 वर्गफुट फीट जमीन की रजिस्ट्री की गई। 27 फरवरी, 2007 दिन मंगलवार को मंदिर का भूमि पूजन अल्मेडा दादा द्वारा एवं सागर भक्त द्वारा किया गया। 19 मार्च, 2007 को नवदर्गा के प्रथम दिन बाऊण्ड्री बाल का निर्माण का कार्य सागर भक्त मंडल द्वारा किया गया । इस समय श्री अल्मेडा दादा की उपस्थिति विशेष थी।

कुआँ (प्रथम) का निर्माण मंदिर के ईशान कोण में खुदाई प्रारंभ कीगयी थी जिसमें अक्षय तृतीया के दिन जल की प्राप्ति हुई थी। मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण करीब 1.5 वर्ष में हुआ था जिस पर 3, 4 और 5 दिसम्बर, 2008 को कलश की स्थापना की गयी थी। 4 दिसम्बर को पूर्ण सागर में कलश की शोभायात्रा निकाली गयी थी। राधाकृष्ण भगवान की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा एवं संत श्रीगुलाबबाबा की मूर्ति एवं श्रीगणेश जी की मूर्ति की स्थापना, प्राण-प्रतिष्ठा एवं जलाभिषेक इस समय दिन में 4 तारीख को 12 बजे सम्पन्न किया गया जिसमें सभी नदियों का जल लाकर अभिषेक किया गया था

4 दिसम्बर, 2008 को नासिक से पंडित बुलाये गये थे जिन्होंने हवन एवं प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न कराया था। अभिषेक का जल एवं सभी नदियो का तीर्थ कुएँ में डाला गया था। इस समय सागर भक्त मंडल, महिला मंडल, अल्मेडा परिवार एवं भारत वर्ष के सभी शहरों से बाबाजी के लिये भक्तों का सहयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा। सागर शहर में कलश यात्रा डॉ.अमरनाथ जैन के घर सिद्ध शिला, भगवानगंज से दोपहर 12 से 1 बजे के बीच निकालीगयी थी । करीब 1 कि.मी. लंबी कलश यात्रा का स्वागत जगह-जगह फलों, चाय, नाश्ता, पानी और मिठाई के अलावा मीठा दूध, हलवा के द्वारा किया गया था। पूरे सागर शहर में वंदनीय गुलाबबाबा जी के भक्तों एवं उनके अनुशासन की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी। बम्बई, दिल्ली, टाकरखेडा, काटेल, नागपुर, मलकापुर, अमरावती, रायपुर, खारगाँव, ओगोल, हैदराबाद, पूना, गुजरात, सूरत, नवसारी, दमोह, जबलपुर, जलगाँव, भोपाल, काशी, मथुरा, हरिद्वार, गंगा, जमुना, सरस्वती, नर्मदा, अमृतकुंड एवं अन्य नदियों का जल, उज्जैन महाकाल मंदिर कुड का जल लाया गया था। जैसा कि सभी बाबाजी के मंदिरों के स्थान पर पहिले बाबाजी की झोपड़ी बनायी जाती है। यहाँ पर भी पहिले बाबा जी की झोपड़ी बनी फिर बाबाजी का मंदिर । मंदिर बनाने का सौभाग्य श्री गोलू ठेकेदार एवं अन्य बाबाजी के भक्तों को प्राप्त हुआ था। 3, 4 और 5 दिसम्बर को करीब 70 हजार भक्तों ने भोजन-भंडारा का लाभ लिया। पहिले 20 हजार फुट जमीन को खरीदा गया। जिसमें प्रमुख सहयोग श्री अल्मेडा दादा एवं सौ.ज्योति अल्मेडा का था। बाबाजी की ऐसी प्रेरणा हुई कि 20 हजार फुट की जगह आज करीब 2 लाख वर्गफुट प्लॉट पर बाबाजी का मंदिर एवं धर्मशाला का निर्माण भी दादा द्वारा किया गया। वन्दनीय बाबाजी की जमीन पर आज तीन कों का निर्माण कार्य किया गया है। जिनमें अथाह पानी रहता है। प्रतिवर्ष 4 दिसम्बर को नगर में पालकी यात्रा. भजन, भंडारा का कार्यक्रम एवं 5 दिसम्बर को भजन एवं अंडाश का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें करीब एक-डेढ लाख भक्त प्रसाद प्राप्त करते हैं।

श्री गुलाबबाबा मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा एवं मंदिर शुद्धि कार्यक्रम


और अंतत: श्री बाबाजी के आर्शीवाद एवं प्ररेणा से पूज्यनीय दादाजी-ताईजी के सान्निध्य में देशभर के भक्तों की उपस्थिती में, नासिक से आये 51 पंडितों ने पूर्ण धार्मिक रीति-विचार-मुहूर्त-हवन-पूजन आदि परंपराओं के साथ 3 दिसम्बर 2008 को मंदिर का शुद्धिकरण किया तथा दिसम्बर 2008 को सभी भक्तों ने मंदिर के अंदर बने प्रतिमा स्थल के नीचे बाबाजी की निजी वस्तुयें ( उपयोग की हुई ) रखकर, उसके ऊपर चॉदी का सिक्का बिछाकर, सोने के आभाषण रखकर, दादाजी एवं ताईजी ने श्रीगुलाब बाबा जी की प्रतिमा को स्थापित किया। मूर्ति स्थापना उपरान्त मदिर को पून: बंद कर नासिक के पंडितों ने श्री बाबा जी का अभिषेक एवं शुद्धि उपरान्त प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान आरंभ किया जो करीब 12 घंटे तक चला एवं बाहर भक्तों ने 'गोपाला-गोपाला-जय गुलाब बाबा गोपाला' का संगीतमयी आयोजन निरंतर चालू रखा। मंदिर परिक्षेत्र (करीब 2 एकड में ) हर जगह भक्तों ने पृथक-पृथक भजनों को जारी रखा कि बाबा इस मंदिर में अवतरित हों, और अंतत: ईश्वर को भी भक्तों की प्रार्थना पर आना पड़ा और प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा जाग्रत प्रतिमा के रूप में हुई। पश्चात 5 दिसम्बर 2008 को सामूहिक भंडारा का आयोजन हुआ जिसमें करीब 35000 भक्तो ने बाबा का प्रसाद ग्रहण किया एवं इस पूरे दिन प्रागण में बने विशाल मच पर श्री बाबाजी के भक्तों के अनुभव, उनका सम्मान एवं भजन कार्यकम चलते रहे जिसमे पूरे देश एवं आस पास के क्षेत्रों के करीब 5000 भक्त पधारे।

सत श्री गुलाबबाबा मंदिर प्रागंण


मधुवनी शैली मे राजस्थानी व्याना के पत्थरों से अत्यंत सुन्दर पच्चीकारी से करीब 4500 वर्गफट में जमीन से लगभब 3 फूट उंचे धरातल पर 48 फीट उँचे मंदिर के अंदर भगवान श्री राधाकृष्ण के साथ श्री गुलाबबाबा जी आशन मुद्रा में विराजमान होकर भक्तों को प्रात: 6,30 से दोपहर 12 बजे तक एवं शाम 4 बजे से रात्री 9,00 बजे तक दर्शन देते है। श्री बाबाजी के सामने ही बाबाजी के चरणों की प्रतिकति है जिसके स्पर्श मात्र से भक्तों को उर्जा मिलती है वर्तमान में करीब 6.5 एकड में फैले इस मंदिर को आकाश मार्ग (कम्प्यूटर में सेटेलाइट से जो छवि लीगई है) से दखने पर मंदिर पिंडी के अनुसार अर्थात शंकरजी की पिंडी के रूप मे दिखता है एवं मंदिर को अंदर से देखने पर विष्णु भगवान के। मंदिर के रूप में दिखाई देता है, परंतु भक्तों के निवेदन पर इसका नाम संत श्री गुलाब बाबा मंदिर सागररखा गया।

6.5 एकड का संपूर्ण मंदिर क्षेत्र करीब 20 से 30 फीट उँची बाऊन्ड्री बाल से सुरक्षित एवं घिरा हुआ है एवं मंदिर के बाज में 4000 फूट की आयताकार भजनशाला है जिसमें करीब 2000 भक्त एक साथ बैठकर भजन कर सकते है जिसमें समय समय पर मंदिर का श्री गुलाब गुजन आर्केस्ट्रा समस्त आधुनिक बाध यंत्रों के साथ मंदिर की ही स्पेशल लाइट एवं साउन्ड व्यवस्था के साथ भजन संध्या का आयोजन करता है जिसमें पुराने गायक भक्तों को सुनने का मौका मिलता है। तो नये गायक भक्तो को एक मंच । भजनशाला के साथ ही सामने भक्तों के लिए भोजन शाला है जहाँ करीब 1000 भक्त एक साथ सम्मान के साथ बैठकर बाबा का भंडारा ग्रहण कर सकते है इसी के ऊपर एवं बाजू में कमश: 2 हाल बने है जिनमें रुकने के लिए भक्तों को तमाम सुविधाये है जिनमें करीब 4000 भक्त एकसाथ रूक सकते है। साथ ही पृथक पृथक सम्पूर्ण आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित 60 कमरे है जो बाबा के भक्ती हेतु हमेशा तैयार है। सभी 60 कमरे5 हाल ही रसोई निर्माण शाला एवं इसके बाजू में स्थित छोटी भोजन शाला की बाहरी दिवारों को व्याना के पत्थरी से निर्मित कर सुंदर एवं आकर्षित पच्चीकारी की गई है तथा ऊपरी दिवारों पर बाबा के भक्त पेंटर बाबा द्वारा सुंदर अलंकरामय श्री गुलाब बाबा शिर्डी साई गजानन महाराज ताजुद्दीन बाबा विठ्ल तानाई सहित रामायण महाभारत के प्रसंगो पर आधारित चित्र बने है एवं भजनशाला को श्रीगुलाब बाबा जी के अत्यंत मनमोहक चित्रों से सजाया गया है।

जयपुर के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकारों द्वारा निर्मित श्री राधाकृष्ण भगवान एवं श्री गुलाब बाबा जी की मन भावन सुंदर प्रतिमाओं के दर्शन उपरान्त मंदिर परिक्षेत्र का भ्रमण करने पर पाते है कि यह मंदिर परित्रोक्ष पूर्ण रूप से हरियालीसे परिपूर्ण आकर्षक लाईट व्यवस्था प्रसाधन पार्किग सुरक्षा एवं कार्यालय सहित अन्य सभी व्यवस्थाओं से परिपूर्ण है जिसे बनाने में राज सरदारजी अपने सहयोगी साथियों के साथ चौबीसों घंटे लगे रहते है। मंदिर के अंदर प्रतिदिन प्रात: 6:45 एव साय 6:45 पर श्री गुलाबबाबा जी की आरती पूर्ण रीती रिवाज के परम्परानुसार होती है जिसमें असंख्य भक्त एकत्रित होते है। तथा प्रत्येक गुरुवार को प्रात: श्री बाबा जी का दूध एवं जल से अभिषेक होता है प्रतिदिन प्रात: 11:30 बजे एवं सायं 7:30 बजे मंदिर की भोजनशाला में निर्मित भोजन का ही श्री बाबाजी को भोग लगता है पश्चात रूके हये भक्तों का भोजन (भंडारा) होता है। प्रतिदिन सायं भजनशाला में रामायण पाठ एवं गुरूवार को सायंकालीन भजनों का कार्यकम होता है।

संत श्रीगुलाब बाबा के प्रवेशद्वार


1 - मुख्य द्वार - धर्मश्री (पंतनगर सागर) स्थित इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की और दुबे तालाब के सामने है यह अतिश्योक्ति नही होगी कि शायद यह संपूर्ण बुन्देलखण्ड या मध्य प्रदेश में प्राचीन या नया सर्वाधिक ऊँचाई वाली प्रवेशद्वार है। लगभग 61 फीट ऊंचे राजस्थानी व्याना के लाल पत्थरों से निर्मित इस द्वार के ऊपरी हिस्से पर श्री विठ्ठल रूक्मणी, भगवान हनुमान, श्री गरुणजी, संत तुकाराम एवं संत श्री ज्ञानेश्वर की प्रतिमाये विराजमान है तथा इसके ऊपर बने गुम्बज पर स्वर्ण कलश स्थापित है एवं बाजू में दोनो और केशरिया ध्वजा पताका लहराती है मंदिर के आयोजनों में जब इस द्वार पर विद्युत सजावट की जाती है तो दूर से ही पता चलता है।

2 - शिव पार्वती परिवार द्वार - मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर सामने मंदिर कार्यालय से लगा हुआ यह करीब 45 फीट ऊँचा लाल पत्थरों से निर्मित अत्यंत ही सुन्दर द्वार है जिसमें सुन्दर पच्चीकारी के साथ माऊन्ट आबू के दिलवाड़ा मंदिरों केसमान कारीगरी है इस द्वार के ऊपर ही आसन मुद्रा में शिव परिवार विराजमान है।

3 - श्रीराम सीतामाता द्वार - मंदिर परिसर मे ही शिव पार्वती द्वार से लगा करीब 50 फीट ऊँचा पूर्ण रूप से मात्र राजस्थानी पत्थरों से निर्मित द्वार की सुन्दर एवं आकर्षक पच्चीकारी सभी को मंत्रमुग्ध कर देती है जिसमें श्रीराम दरबार स्थापित है जिसके नीचे से ही भक्तजन रसोई घर एवं कमरों की तरफ जाते है इसी द्वार के पीछे ही करीब 4 एकड़ का परिसर है जिसमे वार्षिक उत्सव के कार्यकम सम्पन्न होते है।

4 - निर्माणाधीन अन्य 2 प्रवेश द्वार मंदिर परिसर में बालाजी मंदिर रोड से भी प्रवेश हेतू या कार आदि बड़े बाहनों के प्रवेश हेतू दो प्रवेश द्वार है जिनका निर्माण कार्य चालू है और शीघ्र ही श्री बाबा जी के आशीर्वाद से वह भी अपनी भव्यता के लिए मशहूर होगे।

संत श्री गुलाबबाबा मंदिर सागर में होने वाले कार्यक्रम


1. मंदिर वार्षिक स्थापना कार्यक्रम 4 दिसम्बर एवं महाप्रसादी भण्डारा 5 दिसम्बर

2. वन्दनीय बाबा जी की पुण्य तिथि 9 मार्च

3. महाशिवरात्रि, वन्दनीय बाबा जी का जन्मोत्सव 1 जुलाई, गुरु पूर्णिमा, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा

4. प्रत्येक पूर्णिमा भजन भण्डारा

5. प्रत्येक गुरुवार साई बाबा-खिचडी प्रसादी

वैसे तो श्री बाबाजी के मंदिर में प्रतिदिन उत्सवी माहौल होता है एवं स्थानीय भक्तों के साथ देशभर के भक्त अपनी सुविधानुसार श्री बाबाजी के दर्शन को आते हैं, पर सागर के इस मंदिर में मुख्य आयोजन

1 - प्रत्येक वर्ष 4 एवं 5 दिसम्बर को मंदिर का वार्षिक उत्सव प्रत्येक वर्ष 28 या 29 नवम्बर को नरसिंहगढ (दमोह से 30 कि.मी. दूर) के भक्तों द्वारा श्री बाबाजी के चरण पादुकाओं को पालकी में पैदल लेकर असंख्य भक्त नरसिंहगद, दमोह, बाँसा-तारखेडा, गढ़ाकोटा, चनौआ, परसोरिया, बहेरिया, मकरोनिया मार्ग से पैदल-पैदल करीब 100 किलोमीटर की यात्रा कर सागर में डॉ.अमरनाथ जैन के निवास सिद्धशिला एवं अब भाग्योदय अस्पताल सागर के सामने स्थित श्रीगुलाब आश्रम (द्वारकामाई) में 3 दिसम्बर की शाम तक लेकर पहुंचते हैं एवं 4 दिसम्बर को द्वारकामाई से यह चरण-पादुका पालकी शोभायात्रा सुबह 10 बजे आरंभ होती है, जो सागर शहर के मुख्य मार्गो से होती हुई शाम तक मंदिर परिसर पहुंचती है। इस भव्य शोभायात्रा में देश भर से भक्त शामिल होते है एवं यह करीब एक से डेढ किलोमीटर लंबी होती है, जिसमें हाथी, घोडा, रथ, डी.जे., पालकी, अखाडे, नृत्य एवं भजन मंडलियों के साथ अत्यंत सुन्दर एवं आकर्षक झांकियों को शामिल किया जाता है । यात्रा मार्ग में इस शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत, अभिनंदन होता है एवं नगर के भक्त श्री बाबाजी की चरण पादुकाओं की आरती करते हैं । इस शोभायात्रा में हर वर्ष करीब 15 से 20 हजार भक्तों का हुजुम शामिल होता है एवं स्थानीय प्रशासन प्रसन्नता के साथ इसकी व्यवस्था बनाने मैं आगे आता है। राजनीतिज्ञ एवं उद्योगपति इस शोभायात्रा का स्वागत करने में अपने को धन्य समझते हैं। चरण पाढ़का शोभायात्रा के शाम को मंदिर परिसर में पहुंचने पर इसकी भव्य आगवानी की जाती है एवं इसे मंदिर प्रांगण में विशाल गुलाब मंच पर स्थापित किया जाता है, जहाँ सायं 7 बजे भक्तों के द्वारा आरती होती है, जो करीब एक घंटा चलती हे जिसमें वाद्य यंत्रों के साथ आरती गायन एवं गोपाला मंत्र करते हुये सभी भक्त अपने हाथ से आरती करते हैं। पश्चात् भजनों का कार्यक्रम होता है। दूसरे दिन 5 दिसम्बर को दोपहर में आरती के साथ ही भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें करीब 35 से 50 हजार भक्त शामिल होते हैं एवं श्रीगुलाब मंच पर पूरे दिन श्री बाबाजी के गीतों का गायन होता है? साथ ही देशभर से आये भक्तों का परिचय, अनुभव सम्मान, जानकारियाँ आदि चलती रहती हैं।

2 - धरेडी का दिन (1 मार्च ) श्री बाबाजी का समाधी दिवस एवं 1 जुलाई श्री बाबाजी का जन्मदिन समारोह -भक्तों के द्वारा इन दो दिनों में मंदिर परिसर में उपस्थित होकर विशाल आरती एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है, साथ ही जन्मदिवस समारोह में मंदिर को सजाकर श्री बाबाजी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते हैं।

3 - दीपावली, महाशिवरात्रि, होलिका दहन, जन्माष्टमी, शरद पौर्णिमा उक्त दिवसों में भक्त अपने परिवार सहित शामिल होकर संध्याकालीन आरती कर , सामूहिक विशेष-पूजा कर पूर्ण रात्री भजन करते हैं एवं विशेष भंडारे का आयोजन किया जाता है। उक्त सभी त्यौहार भक्तजन सामूहिक रूप से मंदिर में ही मनाते हैं।

4 - प्रत्येक पौर्णिमा- हर माह की पौर्णिमा को स्थानीय एवं आसपास के क्षेत्रों के भक्तों द्वारा मंदिर परिसर में मेले जैसा आयोजन किया जाता है एवं श्री बाबाजी के दर्शन उपरान्त गोपाला मंत्र का आयोजन के साथ भंडारा होता है।

5 - प्रत्येक गुरुवार-श्री गुलाब बाबाजी को हर दिन एवं समय प्रिय था, पर बाबाजी गुरुवार को ज्यादा पसंद करते थे इसी कारण भक्तजन भी गुरुवार को श्री बाबाजी के दर्शन कर अपने को धन्य समझते है। इसदिन प्रात: बाबाजी का दूध-जल से अभिषेक होता है एवं सुबह एवं संध्याकालीन आरती में श्री बाबाजी को फूलों से सजा कर उनका विशेष श्रृंगार करते है।

अति प्राचीन एवं पूज्य भूमि है -सागर के संत श्रीगुलाबबाबा मंदिर की


मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सागर में स्थापित श्री क्षेत्र संत श्री गुलाबबाबा मंदिर सागर, श्री गुलाबबाबाजी के भक्तों के लिये तीर्थ क्षेत्र है,

स्वयं श्री गुलाबबाबाजी के श्रीमुख से -सागर दमोह के भक्तों का प्यार निष्कपट एवं निस्वार्थ भावना से परिपूर्ण है' श्रीगुलाबबाबा जी की ही प्रेरणा से भक्त शिरोमणी पूज्यनीय दादाजी एवं ताई (मुम्बई) ने भक्तों की भावना एवं सहयोग से सागर में 26 फरवरी 2007 को जिस भूमि को खरीदकर श्रीगुलाबबाबा मंदिर का निर्माण कराया है, वह भूमि अति प्राचीनतम् शुद्ध-धार्मिक एवं पूज्य कार्मिक है, इस मंदिर भूमि से लगा हुआ क्षेत्र भी अत्यन्त पूज्यनीय है -

1 - धर्मश्री (पंतनगर) वार्ड, सागर - मराठा शासन में पेशवा शिवाजी द्वारा नियंत्रित राजा श्री गोविन्द पंत खर सागर के शासक एवं राजा थे, सागर के किले में उनका निवास स्थान था, तथा उनका एवं उनका विश्वस्तों के निवास तथा कार्यालय आदि इसी क्षेत्र में स्थापित थे। दुबै तालाब जो कि पहले मराठा (महाराष्ट्रीयन) दुबे परिवार के भूमि हुआ करती थी, पथ्रतात् दुबे परिवार ने खरीदी जिसे वर्तमान में दुबे तालाब (तालाब के कारण) कहा जाने लगा। भूमी के पास ही अत्यंत धना जगल था जहा ऋषि-मुनि प्रार्थना-तपस्या आदि करते थे एवं तालाब के पानी का उपयोग पूजा कार्य के साथ अन्य कार्यों में लेते थे। आज भी तालाब के अवशेषों के साथ मंदिर के अवशेष है।

2 - वेदान्ती में परमहंस दादाजी का स्थान- श्रीगुलाबबाबा मंदिर की भूमि से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित परमहंस दादाजी ने अपना पूरा समय यही गुजारा एवं राम मंदिर की स्वयं स्थापना की थी, आप स्वयं मंटू नाम के अंध-लंगडे के कधी पर बैठकर घूमा करते थे, एवं एक समय में अलग-अलग स्थानों पर अपने भक्तों को मिलते थे, एवं तालाब के पानी पर दौड लगाते थे तथा अपने आशीर्वाद से भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते थे।

3 - काकागज का अतिशय जैन मंदिर- संत श्रीगुलाबबाबा मंदिर से लगभग 1.5 कि.मी. की दूरी पर स्वप्न देकर जमीन से प्रगट जैन तीर्थकर की मूर्ति है, जिस पर विशालतम मंदिर का निर्माण किया गया है, यह स्थान जैन समाज की आस्था का प्राचीन एवं सिद्धक्षेत्र है, जहाँ पर जैन संतों एवं आचार्यों का आगमन होता रहता है।

4 - उदासीन आश्रम- शांतिनाथ भगवान का मंदिर- संत श्री गुलाबाबा मंदिर से लगभग 1 कि.मी. दूर जैन तीर्थकर भगवान श्री शातिनाथजी का प्राचीनतम मदिर एवं सिद्धक्षेत्र है,एक समय यह क्षेत्र जैन ऋषीमुनियों, संतों का साधना क्षेत्र रहा है।

5 - संस्कृत पाठशाला धर्मश्री- संत श्री गुलाबबाबा मंदिर के ठीक पीछे अति प्राचीनतम संस्कृत पाठशाला है, जिसमें पूर्व में देशभर के पंडित अध्ययन के लिये आते थे, एवं ख्याति प्राप्त संत-महात्माओं का यहाँ समागम होता था, आज भी इस संस्कृत पाठशाला में पठन-पाठन का कार्य होता है।

6 - महालक्ष्मी मंदिर (लक्ष्मीपुरा) - संतश्री गुलाब बाबा मंदिर से लगभग 2 कि.मी. पहिले ही अति प्राचीनतम मराठा शासक वर्ग द्वारा स्थापित भव्य महालक्ष्मी मंदिर है, जिसमें हाथी के ऊपर विशेष मुद्रा में महालक्ष्मी माता विराजमान है, इस मंदिर में दशहरा के दिन शमी पेड़ के पत्तों का माँ महालक्ष्मी को चढाने का विशेष महत्व है। दशहरा एवं दीपावली के दिन सागर एवं आस-पास के क्षेत्र के मराठी परिवारों के साथ अन्य भक्त भी बड़ी संख्या में इस मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं।

7 - गोला कुआँ - संत श्री गुलाब बाबा मंदिर, सागर को मुख्य रूप से गोला कुऑ के पास स्थित मंदिर कहा जाता है। चूंकि यह प्राचीनतम क्षेत्र है, एवं इस क्षेत्र में बने कये पर आस-पास के सैकड़ों गाँव के लोग अपनी-अपनी बैलगाडी को यहीं विराम देते थे एवं रात्रि विश्राम करते थे।

8 - मोराजी जैन मंदिर - गुलाब बाबा मंदिर से लगभग 2.5 कि.मी. पहिले ही अत्यन्त विस्तृत, भव्य, प्राचीनतम जैन मंदिर मोराजी है, वास्तव में यह जगहमराठा सेना के सेनापति मोरारजी ठिगनकर की हुआ करती थी, पश्चात् उनके वंशजों ने इस जैन समुदाय को भेंट की थी, जिस पर वर्तमान में मोराजी जैन मंदिर है, जिसमें जैन समाज के साधु-संत, आचार्य आदिरुकते हैं एवं सागर के अधिकतम धार्मिक आयोजन पूर्ण होते हैं।

9 - बाघराज मंदिर- संत श्रीगुलाबबाबा मंदिर से करीब 4 कि.मी. दूर माता दुर्गा का अति प्राचीन एवं सिद्ध मंदिर है, जहाँ कभी शेर (बाघ) रहा करते थे एवं साधु-सन्यास तपस्या करते थे। भक्तों की आस्था का यह क्षेत्र सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड में ख्याति प्राप्त है।

10 - जैन तीथक्षेत्र मंगलगिरी- संत श्री गुलाबबाबा मंदिर सागर से 2 कि.मी. दूर पहाड़ी पर सिद्ध जैन क्षेत्र हैं, जहाँ पीतल से निर्मित भगवान महावीर स्वामी प्रतिमा स्थापित है।

11 - श्री बालाजी सरकार मंदिर धर्मश्री - बालस्वरूप हनुमान जी, प्रेतराज सरकार, श्री भैरव बाबा, माँ दुर्गा (रानगिर) के साथ अन्य सिद्ध मंदिर इस क्षेत्र में स्थापित है। जहाँ भक्तों की समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती है। प्रत्येक मंगलवार को भक्तों द्वारा विशेष पूजा-पाठ के कार्यक्रम होते है।

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सिदेश्वर संत श्री गुलाब बाबा की जय

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